बेटी की पाती मां के नाम

प्यारी माँ,

      चरण स्पर्श।

 

आज मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं कि आपके व्यक्तित्व का वर्णन कर सकूं। आपके वात्सल्य को प्रतिबद्ध कर सकूं। लेकिन फिर भी एक नाकाम कोशिश कर रही हूं।

व्यस्ततम जीवन से थक कर सुस्ताने बैठी। तो जेहन में आपकी याद ताजा हो उठी। क्योंकि मुश्किलों और उधेड़बुनों से निकलना आपने ही तो सीखाया।

                         आपके शब्द आज भी मेरे कानों में गुंजते हैं "बेटा शब्दों मे ताकत होती है सुंदर शब्द जीवन को इंद्रधनुषी रंगों से भर देते है।.

                           माँ, जब मैं छोटी थी तो आप रोजाना दो चोटियां बनाकर मुझे विद्यालय भेजती । जब मैं विद्यालय से वापस आती, तब तक आप भूखी रहकर मेरे साथ ही खाना खाती ।

मैं जब तक पढ़ती तब तक आप नहीं सोती थी। आपने इतना त्याग किया कि मुझे छोड़कर आप ननिहाल भी नहीं जाती थी ।

                           जब आप ये कहते थे "इधर नहीं जाना, उधर नहीं जाना, ये नहीं करना, वो नहीं करना।" तब गुस्सा भी आता था मुझे कभी कभी । लेकिन उसका कारण मुझे आज समझ में आता है। आप मेरा सर्वांगीण विकास चाहती थी ।

               आपका पढ़ाई के दृष्टिकोण से अनुशासन बहुत कठोर रहा है।

पढाई को लेकर जितना अध्यापकों से नहीं डरती थी, उतना आपसे मैं ङरती थी ।

                       शायद वो इसीलिए ही था कि कहीं मैं अपने पैरों पर खड़ा होने में पीछे ना रह जाऊ । आप बड़े भाई बहनों को पढाई ना करने पर कठोर दंड भी देती थी ।

                           उनका दंड मेरे जीवन में बहुत काम आया, उस डर से मैं बहुत पढ़ती और हमेशा कक्षा में टॉप आती ।

                       जैसा कहा जाता है कि प्रथम शिक्षक, मां होती है, यह उक्ति आप पर पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है। इतने मजबूत संस्कारों से मेरे जीवन को भर दिया आपने, मैं चाहूं भी तो उनको नहीं छोड़ सकती।

         मैं बड़ी हुई तो आप अपने अस्तित्व को भूल कर मेरे लिए सपने बुनने लगी । अपने व्यक्तित्व से मेरे व्यक्तित्व निर्माण में जुट गई। आपकी ही कोशिश थी, कि मैं मेरे सपनों को हवा देने में कामयाब हुई।

 

आपकी वो एक जिद की "तुम्हारी नौकरी से पहले तुम्हारा विवाह नहीं करूंगी" आज भी याद आती है।आपकी जिद को मेरी जिद से जोड़ कर उसको पूर्ण किया। मैं भी अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हुई ।

मां.... आप और छोटा भाई मिलकर पापा से भी अड़ गए थे कि विवाह करेंगे तो अध्यापक से करेंगे । क्योंकि हमारी बेटी अध्यापिका है।

आप ईश्वर का प्रतिरूप है भगवान ने आपकी वो ईच्छा भी पूरी की ।

 

जो मेरे भविष्य के लिए कारगर साबित हुई । मैं जब विदा हुई उस वक्त तो आपने मुझे अपने दुख का अहसास नही होने दिया। लेकिन बाद में आपकी हालत की गंभीरता का अहसास मुझे हुआ ।

 

आपने जो जिम्मेदारियां मुझे समझाई थी मैंने उन्हे यथासंभव सामर्थ्यनुसार निभाने का प्रयास किया ।मैंने उन सभी बातों को याद रखा जो आपने समझाई, ये आपके ही संस्कारों का परिणाम है कि आज मेरे ससुराल में सभी ये कहते है "बेटी हो तो ऐसी"

आपने मुझे आवरण रूपी ममत्व में रखते हुए मेरे व्यक्तित्व को सींचा। ये सब उसी का परिणाम है।

आज जब खुद माँ बन गई हूँ तो उस दायित्व को समझ पा रही हूं कि माँ, माँ होती है। माँ की जिंदगी बच्चे के इर्द गिर्द होती है।

आपने जो संस्कार, पारिवारिक मूल्य, मानवीय मूल्य मुझे दिए वो आज भी मैं अपनाती हूँ।

हालांकि समय के अनुसार मापदंड बदल जाते है. लेकिन आपने तो मुझे प्रवाह के साथ बहने की नसीहत भी दी है।

आपने मुझे अपने पैरों पर खडा किया, मेरे लिए जमाने से लडे । समाज से ये सुना - " बेटी, बड़ी हो गई विवाह कर दो ।"

आपने कितने श्रम, तन, मन, धन से मेरी परवरिश की, यह मैं भूला नहीं सकती । आज आपके ही संस्कार मेरी पृष्ठभूमि और आधारशिला हैं।

                     मैं भी आज माँ हूं लेकिन आपका अंशमात्र भी शायद नहीं कर पा रही हूं। आप आज भी मेरे सुख दुख के साथ जुड़े हुए है, आज भी मेरी समस्याओं का निवारण करते हैं। परिवार और बड़ों का सम्मान करने की सीख आज भी देते हैं।

आपकी ये शिक्षा हमेशा याद आती है "जो हुआ उसको भूलो और आगे बढो ।" आपका रिश्ता बिना स्वार्थ और शर्त का है। जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता ।

 

आपका त्याग, और संघर्ष मुझे आज भी हौंसला देता है। आपने पूरे परिवार को एक भावनात्मक सूत्र में भी पिरोए रखा । आपका साया ही मेरी हिम्मत की डोर है। आज भी आपकी डांट के बिना जीवन बोर लगता है, वैसे आज भी कुछ गलत हो जाता है तो आप फोन पर ही रिमांड शुरू कर देती हैं।

 

जिससे मैं कम से कम गलती करने का प्रयास करती हूं। आपसे ही तो मुझे अच्छे बुरे की सीख मिली । समय निष्ठा का पाठ भी आपने पढाया। जो मैं आज भी मेरे जीवन में साथ लेकर चलती हूं,

 

आप मेरी गलतियों पर नाराज भी होती है, पर हिम्मत और साहस भी बंधाती है जो मुझे बहुत अच्छा लगता है।

हाँ, आप मेरे पढ़ने के जज्बे की अब भी प्रशसंक है, जब मैं महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर बनी तो आपको अपार खुशी मिली। क्योंकि मेरी प्रेरणास्त्रोत आप ही हैं जो मुझे यहां तक लेकर आई ।मेरी कामयाबी की सबसे बडी सीढी आपकी शिक्षा है।

मेरे साथ, चाहे कैसी परिस्थितियाँ रही, आपने हिम्मत नहीं हारने दी और हमेशा साथ दिया ।

आज भी यदि कभी किसी के व्यवहार से परेशान होती हूं तो बस आपसे सीखी बात याद रखती हूं कि अच्छा व्यवहार, आचरण, अच्छा व्यक्तित्व सबसे उपर रहता है।

ससुराल में मुझे बड़े होने का अहसास होता है, लेकिन फोन पर आपसे बात करती हूं तो आज भी ऐसा लगता है कि मैं बच्ची हूं।

आप मेरी सुपर वुमन मां है।

आप मुझ पर इसी तरह प्यार और आशीर्वाद बनाए रखना ।

 

                                              आपकी  बेटी 

                                              बबिता  कुमावत 


तारीख: 23.06.2025                                    बबिता कुमावत




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